कछुआ और खरगोश
बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर जंगल था जहाँ ढेर सारे जानवर रहते थे – हिरण, लोमड़ी, हाथी, बंदर, चिड़ियाँ और भी कई। उसी जंगल में एक तेज़ दौड़ने वाला खरगोश और एक धीमी चाल वाला कछुआ भी रहते थे। खरगोश को अपनी तेज़ रफ्तार पर बड़ा घमंड था। वह अक्सर कहता,
“मेरे जैसा तेज़ कोई नहीं। मैं बिजली से भी तेज़ दौड़ता हूँ। जंगल में कोई मुझे हरा नहीं सकता।”
हर दिन वह किसी न किसी जानवर को चिढ़ाता और चुनौती देता। कभी वह हिरण से कहता, “क्या तुम दौड़ सकते हो मुझसे तेज़?” कभी लोमड़ी को ताना मारता, “तुम्हारी चाल तो बहुत ही सुस्त है।”
सभी जानवर उसकी बातों से तंग आ चुके थे, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं था।
एक दिन खरगोश कछुए के पास गया और बोला,
“अरे कछुआ! तुम तो सबसे सुस्त जीव हो। एक कदम चलने में तुम दस मिनट लगा देते हो। क्या तुम्हें शर्म नहीं आती कि तुम इतने धीरे चलते हो?”
कछुआ बहुत शांत स्वभाव का था। वह कभी किसी से झगड़ता नहीं था। उसने मुस्कुराते हुए कहा,
“हाँ, मैं धीरे चलता हूँ, लेकिन मैं कभी रुकता नहीं। मैं लगातार चलना जानता हूँ।”
खरगोश हँसने लगा, “वाह! चलो फिर, एक दौड़ लगाते हैं। देखते हैं कि तुम जीतते हो या मैं।”
कछुआ बोला, “ठीक है। चलो दौड़ हो जाए।”
अगले दिन दौड़ का आयोजन किया गया। जंगल के सारे जानवर इकट्ठा हुए – सब बड़े उत्साहित थे। दौड़ की शुरुआत एक पुराने और बुद्धिमान हाथी ने की। वह बोला,
“यह दौड़ इस जंगल के बड़े बरगद के पेड़ से शुरू होकर नदी के किनारे वाले पत्थर तक होगी। जो पहले वहाँ पहुँचेगा, वही विजेता होगा।”
सीटी बजी और दौड़ शुरू हो गई। खरगोश बिजली की तरह दौड़ा। वह इतनी तेज़ दौड़ा कि थोड़ी ही देर में वह कछुए से बहुत आगे निकल गया। कछुआ धीरे-धीरे अपने छोटे पैरों से आगे बढ़ रहा था। उसका चेहरा शांत था, और उसके कदम मजबूत।
थोड़ी दूर जाकर खरगोश ने पीछे देखा। कछुआ बहुत पीछे था। वह मुस्कुराया और बोला,
“उसे तो पहुँचने में बहुत देर लगेगी। क्यों न मैं थोड़ा आराम कर लूं?”
वह पास के एक पेड़ के नीचे लेट गया और झपकी लेने लगा। लेकिन झपकी गहरी नींद में बदल गई।
उधर, कछुआ बिना रुके, बिना थके आगे बढ़ता रहा। उसकी चाल भले ही धीमी थी, लेकिन उसमें निरंतरता थी। उसके मन में एक ही लक्ष्य था – मंज़िल तक पहुँचना।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। सूरज की किरणें तेज़ होने लगीं। कछुआ मंज़िल के पास पहुँचने वाला था। जैसे ही उसने आखिरी मोड़ पार किया, वहाँ बैठे जानवरों ने तालियाँ बजाईं। वे हैरान थे कि कछुआ खरगोश से पहले पहुँच गया!
खरगोश की नींद तभी खुली। उसने घबरा कर दौड़ लगाई, लेकिन जब तक वह पहुँचा, कछुआ विजेता बन चुका था।
खरगोश शर्म से सिर झुकाकर खड़ा रहा। उसने कछुए से माफी माँगी और कहा,
“मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। घमंड नहीं करना चाहिए। मेहनत और धैर्य ही असली ताकत है।”
कछुआ मुस्कराया और बोला,
“हर कोई अपनी गति से चलता है, लेकिन लगातार चलना ज़रूरी है।”
जंगल के सभी जानवरों ने तालियाँ बजाईं और दोनों की दोस्ती
सीख:
घमंड करना सही नहीं होता, क्योंकि वह हार का कारण बन सकता है।
लगातार मेहनत और धैर्य ही सफलता की असली कुंजी है।