बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे — रामू और श्यामू। वे बचपन से साथ खेले, साथ पढ़े और हमेशा एक-दूसरे की मदद करते रहे। दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि गाँव के लोग उनकी मिसाल दिया करते थे – “रामू-श्यामू जैसे दोस्त बनने चाहिए।”
रामू शांत और सहनशील स्वभाव का था, जबकि श्यामू थोड़ा चंचल और डरपोक किस्म का लड़का था। लेकिन इसके बावजूद, दोनों की दोस्ती में कभी दरार नहीं आई।
एक बार गर्मियों की छुट्टियों में उन्होंने सोचा कि क्यों न जंगल में जाकर लकड़ियाँ काटी जाएँ और उन्हें बेचकर कुछ पैसे कमाए जाएँ। दोनों ने अपने-अपने कुल्हाड़े उठाए और सुबह-सुबह जंगल की ओर चल पड़े।
चलते-चलते वे जंगल के अंदर पहुँच गए, जहाँ बहुत शांति थी। वे लकड़ियाँ काटने में व्यस्त हो गए और समय का ध्यान ही नहीं रहा। तभी झाड़ियों से अचानक एक शेर गरजता हुआ उनके सामने आ गया।
श्यामू बहुत डर गया। उसने बिना कुछ सोचे-समझे एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया। वह जानता था कि रामू पेड़ पर चढ़ना नहीं जानता, लेकिन उसने उसकी मदद नहीं की।
रामू एक पल के लिए घबरा गया, लेकिन उसने धैर्य से काम लिया। उसे याद आया कि उसके दादाजी ने एक बार कहा था,
“अगर किसी जानवर से बचना हो और वह शिकार नहीं करना चाहता, तो मरे होने का नाटक करो।“
रामू ने तुरंत ज़मीन पर लेटकर अपनी साँसें रोक लीं और अपनी आँखें बंद कर लीं। शेर धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा, उसे सूँघा, और यह सोचकर कि वह मर चुका है, वापस लौट गया।
शेर के जाते ही श्यामू पेड़ से नीचे उतर आया। वह रामू के पास गया और मुस्कुराकर बोला,
“भाई, उस शेर ने तुम्हारे कान में क्या कहा? कुछ सीक्रेट तो नहीं बता गया?”
रामू ने उसकी ओर देखा और गहरी साँस लेकर कहा,
“हाँ, शेर ने मेरे कान में कहा — ‘जो दोस्त मुसीबत में तुम्हारा साथ छोड़ दे, उस पर कभी भरोसा मत करना।'”
श्यामू यह सुनकर शर्मिंदा हो गया। उसे अपनी गलती का गहरा पछतावा हुआ। उसने सिर झुका कर रामू से माफ़ी माँगी,
“मुझे माफ कर दो रामू, मैं डर गया था। मैंने तुम्हारे बारे में नहीं सोचा। अब से मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा, चाहे कुछ भी हो जाए।”
रामू ने मुस्कुराते हुए कहा,
“गलती इंसान से होती है श्यामू। अगर तुमने अपनी गलती मान ली है और सुधार की कोशिश करोगे, तो मैं तुम्हें माफ करता हूँ।”
उस दिन के बाद से श्यामू बदल गया। वह और रामू अब और भी गहरे दोस्त बन गए। उनकी दोस्ती में अब समझदारी, भरोसा और सच्ची निष्ठा भी जुड़ गई थी।
नैतिक शिक्षा
सच्चा मित्र वही होता है जो हर परिस्थिति में साथ दे। मुसीबत के समय ही सच्ची मित्रता की पहचान होती है।